“सनातन और निरंतर सभ्यता का पक्ष’ पुस्तक भारतीय भाषाओं में बेस्ट सेलर की श्रेणी में प्रथम

वर्धा/संवाददाता महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विेशविद्यालय, वर्धा के कुलपति व सुप्रसिद्ध दार्शनिक आचार्य रजनीश कुमार शुक्ल से संवाद पर केंद्रित पुस्तक “सनातन और निरंतर सभ्यता का पक्ष’ को अमेजॉन के भारतीय भाषाई बेस्ट सेलर की श्रेणी में प्रथम स्थान मिला है। ख्यातिलब्ध पत्रकार रामबहादुर राय ने इस पुस्तक के पुरोकथन में लिखा है कि आचार्य रजनीश शुक्ल को साधुवाद कि उन्होंने संवाद का अवसर देकर इस लुप्तधारा को फिर से प्रवाहित करने की पहल कर दी है। इस पुस्तक में धर्म, दर्शन, सभ्यता, संस्कृति, शिक्षा, साहित्य, भाषा, कला, विज्ञान जैसे विषयों पर साक्षातकर्ताओं ने प्रश्न पूछे हैं, जिनके उत्तर आचार्य रजनीश शुक्ल ने दिए हैं। वे समाधानकारक हैं। इसमें कोई संशय नहीं रहना चाहिए कि आचार्य रजनीश शुक्ल ने अपनी अर्जित विद्या और अनुभव को उत्तरों में उतारा है। उनके उत्तर में शास्त्र समर्थित विचार हैं।

शास्त्र और संस्कृति के विचार की गंगोत्री संस्कृत है। इसका ही उनकी भाषा पर प्रभाव भी है, लेकिन जैसा अक्सर होता है कि संस्कृत के आचार्य की वैचारिक दृ़ढता अहंकार का पर्याय बन जाती है, वैसा इस संवाद में नहीं है, यह सुखद अनुभव है। सौंदर्यशास्त्र, आलोचना, ललित निबंध आदि विषयों के पारखी आचार्य रजनीश कुमार शुक्ल हिंदी, अंग्रेजी एवं संस्कृत भाषा में निष्णात हैं। “काण्ट का सौंदर्यशास्त्र’, “वाचस्पति मिश्र कृत तत्त्वबिंदु’, “अभिनवगुप्त : संस्कृति एवं दर्शन’, “गौरवशाली संस्कृति’, “स्वातंत्र्योत्तर भारतीय दार्शनिक पृष्ठभूमि’, “एन इंट्रोडक्शंन टू वेस्टर्न फिलॉसफी’, “अभिनवगुप्त : क ल् च र ए ं ड फिलॉसफी’, “शिक्षा जो स्वर साध सके’, “सनातन और निरंतर सभ्यता का पक्ष’ जैसी कृति के रचयिता प्रो. शुक्ल की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक “भारतीय ज्ञानपरंपरा और विचारक’ की काफी चर्चा हुई है।

इसी पुस्तक पर उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है। इस पुस्तक में संपादक द्वय डॉ. जयंत उपाध्याय एवं डॉ. अमित कुमार विेशास सहित बारह साक्षात्कारकर्ताओं यथा : प्रो. कृपाशंकर चौबे, प्रो. कृष्ण कुमार सिंह, डॉ. शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी, ेशेता राय, मुक्ता, डॉ. ऋषभ कुमार मिश्र, डॉ. विजया सिंह, डॉ. सेराज अहमद अंसारी, जगन्नाथ कश्यप, रौशन ठाकुर द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देते हुए आचार्य रजनीश कुमार शुक्ल भाषा, साहित्य, मीडिया और राजनीति के अंतर्संबंधों पर विश्लेषण किया है। इस ग्रंथ में भारतीयता, सनातनता, भारतीय मूल्य. बोध तथा संस्कृति के अनछुए पक्षों पर व्यापक दृष्टि एवं संवादात्मक शैली में चिंतन का प्रस्फुटन हुआ है। प्रलेक प्रकाशन से प्रकाशित “सनातन और निरंतर सभ्यता का पक्ष’ जैसी कृति को अमेजॉन के भारतीय भाषाओं में बेस्ट सेलर की प्रथम श्रेणी पर स्थान मिलने से हिंदी जगत् में खासा चर्चा हो रही है जिसकी अनुगूंज सोशल मीडिया में भी दिखाई दे रही हैं।